पश्चिमी यूपी की हॉट सीट मुजफ्फरनगर में जाति की चाशनी तय करेगी कि किसका चुनाव मीठा होगा और किसका कसैला। चुनाव अभी 'मेल्टिंग प्वाॅइंट' पर है। गन्ने के रस की तरह मुद्दे लंबे समय तक तेज आंच में पकने के बाद चुनाव में गाढ़ापन ले आए हैं। अब मिठास से भरे चुनावी गुड़ को आकार देने और बांधने की कोशिशें चल रही हैं। इन सबके बीच स्थानीय स्तर पर चुनावी माहौल में उभर आए पुराने गिले-शिकवे, जात-पात और बड़े-छोटे का कसैलापन भी दिखता है।
दो बार के सांसद डॉ. संजीव कुमार बालियान की हैट्रिक रोकने के लिए इस बार विपक्ष ने कड़ी फील्डिंग लगाई है। हैट्रिक के लिए भाजपा की राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) से गठजोड़ की 'ट्रिक' बालियान के लिए एक बड़ी उम्मीद मानी जा रही है। लिहाजा परीक्षा भाजपा-रालोद गठबंधन की भी है। बालियान मोदी सरकार में राज्यमंत्री हैं और केंद्र के साथ उनका भी पिछले 10 साल का काम मतदाताओं की कसौटी पर है। मुकाबले में इस चौधरी के खिलाफ दूसरे चौधरी हरेंद्र सिंह मलिक हैं।
विपक्षी गठबंधन से कांग्रेस-सपा उम्मीदवार मलिक इस बार मैदान मार लेने के लिए बेताब दिखाई दे रहे हैं और गैर भाजपाई वोटों को लेकर आश्वस्त हैं। मलिक खांटी राजनीतिज्ञ हैं और चुनाव लड़ने का उनका लंबा अनुभव है। वह विधानसभा और लोकसभा के करीब नौ चुनाव लड़ चुके हैं।
समर में उतरे बसपा के दारा सिंह प्रजापति तीसरा कोण बनाने की कोशिशों में जुटे हैं। दारा सिंह रियल एस्टेट कारोबारी हैं। भाजपा को बसपा के इस ओबीसी कार्ड की भी चिंता है। भाजपा यह मानती रही है कि प्रजापति समाज के लोग उसके पक्ष में वोट करते आए हैं। ऐसे में दारा सिंह के चुनावी दांवपेच में प्रजापति समुदाय का कितना वोट भाजपा की झोली में पड़ेगा या छिटकेगा, यह देखना भी दिलचस्प रहेगा। चुनाव का अभी तक का जो दृश्य नजर आ रहा है, उसमें रण में उतरे 11 प्रत्याशियों में से मुख्य मुकाबला भाजपा और विपक्षी गठबंधन के बीच ही माना जा रहा है।