मिलिए मुजफ्फरनगर की सामाजिक कार्यकर्ता शालू सैनी से, जो पिछले 15 सालों से अपनी खुद की जीवन की परेशनियां भूलकर दूसरे लोगों के लिए काम कर रही हैं। कोरोना के समय में उन्होंने लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करना शुरू किया था और अब तक वह 500 से ज्यादा लोगों का परिवार बन अंतिम क्रिया करा चुकी हैं।
क्रांतिकारी शालू सैनी मुजफ्फरनगर के मोहल्ला दक्षिणी कृष्णापुरी के एक साधारण परिवार की रहने वाली हैं. उनके दो बच्चे हैं और घर पर ही ठाकुर जी (कृष्ण जी) भगवान की ड्रेस बनाकर बेचने व महिलाओं को भगवान की ड्रेस बनाने का कार्य सिखाती हैं. क्रांतिकारी शालू सैनी साक्षी वेलफेयर ट्रस्ट नाम की संस्था भी चलाती हैं और वह उसकी राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. शालू सैनी अपनी संस्था के द्वारा सामाजिक कार्यों के अलावा शवों के दाह संस्कार का खर्च इसी से करती हैं. शालू सैनी का कहना है कि वह अभी तक लगभग 500 लावारिस शवों का अंतिम संस्कार पूरे विधि-विधान से कर चुकी हैं व उनकी अस्थियों का विसर्जन शुक्रताल में करती हैं. इसी के चलते क्रांतिकारी शालू सैनी के सामाजिक कार्य के लिए उनका नाम इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में भी दर्ज हो चुका है.
शालू सैनी ने बताया कि क्रांतिकारी विचारधारा जब मन में होती है तभी हम क्रांतिकारी कार्य कर पाते हैं. उन्होंने ने बताया कि मैं एक एनजीओ चलाती हूं. करीब हम 500 शवों का अंतिम संस्कार करा चुके हैं और करोना काल में अस्थियां श्मशान के बाहर तक मिली मैंने उनका विसर्जन किया. शालू ने बताया कि सामाजिक संस्कार उनके मन में बचपन से ही हैं. समाज से मुझे बहुत प्रोत्साहन मिला और उनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है लेकिन समाज भी उनका बहुत सहयोग करता है. उनकी संस्था द्वारा टोल फ्री नंबर जारी कर रखा है. इसमें उन्हें सभी थानों से सूचना मिलती है और इसमें पुलिस व प्रशासन भी उनकी सहायता करता है और वह वहां पहुंच जाती हैं.
शालू का कहना है कि उनके पड़ोसी भी उनके कार्य से बहुत खुश हैं. उनके पड़ोसी शैलेन्द्र, मनु व अन्य ने बताया कि उन्होंने कोरोना काल से अब तक लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार किया. उनका समाज में बहुत अच्छा संदेश जा रहा है और वह भी प्रयास करते हैं कि वह उनके साथ इस कार्य में जुड़ें.