साल, तारीखें और सरकारें बदलती रहीं लेकिन दिल्ली का दामन लापरवाही और अव्यवस्थाओं का तालाब बना हुआ है. इसका बारिश से बदहाल होना बदस्तूर जारी है. सरकारों ने दिल्ली से कई वादे किए. इसे पेरिस बनाने का ख्वाब भी दिखाया गया. हकीकत क्या है… ये तस्वीरें बयां कर रही हैं कि किस तरह दिल्ली इस बदहाली को भुगत रही है.
इस साल मई-जून में दिल्ली ने जलसंकट देखा. इंतजार था कि बारिश आएगी तो कुछ राहत मिलेगी. बारिश तो आई लेकिन अव्यवस्थाओं का शिकार देश की राजधानी अब जलभराव से तबाह है. दिल्ली में 88 साल बाद जून में 228 एमएम बारिश हुई है. हालत ये है कि सड़कों पर 4 से 5 फीट पानी भरा हुआ है. कारें तैर रही हैं. वसंत विहार इलाके में मकान गिरने से 3 मजदूर दब गए, जिन्हें मलबे से निकालने की कोशिश जारी है.
दिल्ली के इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट के टर्निमल 1 पर एक कैब ड्राइवर की मौत हो गई है. पार्किंग की छत गिरी और उसकी जान ले ली. ये घटना उस वक्त हुई जब टर्मिनल – 1 के पार्किंग एरिया में गाड़ियों की लंबी लाइन लगी थी. तेज बारिश हो रही थी. तभी गेट नंबर 1 से गेट नंबर 2 तक फैले पार्किंग का शेड नीचे गिरा. इसमें लोहे के तीन सपोर्ट बीम गाड़ियों पर आकर गिरे. इस हादसे के बाद कई लोगों को बचा लिया गया लेकिन कैब ड्राइवर की मौत हो गई
हादसे के बाद एविएशन मिनिस्टर राम मोहन नायडू एयरपोर्ट पहुंचे. हादसे को लेकर आरोपों को एक-दूसरे पर ट्रांसफर करने वाली यही सियासत भी नजर आई. कांग्रेस का आरोप है कुछ दिन पहले पीएम ने टर्मिनल-1 का उद्घाटन किया था. इसीलिए जिम्मेदारी बीजेपी की है. जब यही सवाल एविएशन मिनिस्टर से किया गया तो उन्होंने कहा कि जो हिस्सा गिरा है वो साल 2009 में कांग्रेस के शासन में बना था.
मानसून की पहली बारिश में मिंटो ब्रिज डूब गया है. ये पहली बार नहीं है. हर बारिश में मिंटो ब्रिज का डूबना एक जैसे एक वार्षिकोत्सव बन चुका है. साल 1958 से दिल्ली के मिंटो ब्रिज के नीचे जलभराव की समस्या बनी हुई है. 66 साल के बाद भी इस समस्या का समाधान नहीं हुआ. पिछले साल इस मिंटो ब्रिज को PWD ने वाटर लॉगिंग वाली लिस्ट से हटा दिया था.
इस साल मिंटो तालाब बन गया. मिंटो ब्रिज की समस्या आज की तारीख में भी जस की तस बनी है. तारीखें बदलती गईं. सरकारें बदलती गई. साल बदलते गए लेकिन मिंटो ब्रिज के हालात आज भी वही हैं. कुछ घंटों की बारिश में ये तालाब में तब्दील हो जाता है.
दिल्ली में कितनी सरकारें आईं और गईं लेकिन कभी किसी ने ड्रेनेज सिस्टम को चुनावी मुद्दा नहीं बनाया. ये दलील जरूर दी जाती है कि दिल्ली में जलवायु परिवर्तन की वजह से जब बारिश ज्यादा होती है तो जो पानी भर जाता है. सवाल ये है कि जब जलवायु परिवर्तन हो रहा है तो सिस्टम में और क्षमताओं में परिवर्तन क्यों नहीं किया जा रहा है. बस जब बारिश होती है तब ही ड्रेनेज सिस्टम पर सवाल उठते हैं.