केजरीवाल का अमेरिका के फाउंडर बेंजामिन फ्रैंकलिन से क्या है कनेक्शन, जज न्याय बिंदु के फैसले का 250 साल पुराना नाता समझिए


 नई दिल्ली: एक आदमी अपने जीवन में क्या क्या हो सकता है? आप यकीन करें या न करें, मगर अमेरिका के फाउंडर बेंजामिन फ्रैंकलिन को अमेरिकी प्रिंटर, पब्लिशर, लेखक, आविष्कारक, वैज्ञानिक और कूटनीतिज्ञ कहा जाता है। एक ऐसा शख्स जो अमेरिका की नींव रखने वाले फाउंडिंग फादर्स में से एक था। जिसने अमेरिकी क्रांति के दौरान फ्रांस में अमेरिका का प्रतिनिधित्व किया था। एक ऐसी हस्ती, जिसने अमेरिका की आजादी के घोषणापत्र पर दस्तखत किए थे। यही नहीं उसने अमेरिकी लोगों के लिए ऐसा संविधान लिखा, जो आज भी भारत समेत पूरी दुनिया के लिए नजीर है। हाल ही में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को शराब घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में जमानत देते हुए जज न्याय बिंदु ने अमेरिका के संस्थापकों में से एक बेंजामिन फ्रैंकलिन का जिक्र किया। आइए- समझते हैं कि फ्रैंकलिन कौन थे और उनकी बातें आज भी भारतीय अदालतों में क्यों गूजती हैं।

17 बच्चों में 10वें नंबर की औलाद थे फ्रैंकलिन

अमेरिका के बोस्टन में जन्मे फ्रैंकलिन अपने माता-पिता के 17 बच्चों में 10वें नंबर की औलाद थे। उनके पिता तब साबुन और मोमबत्तियां बेचा करते थे। फ्रैंकलिन ने ही क्रांतिकारी युद्ध को समाप्त करने वाली पेरिस की 1783 की संधि को तैयार करने में एक अहम भूमिका निभाई थी। उन्होंने ही अमेरिका के लिए मानवाधिकारों की अहमियत देते हुए संविधान तैयार किया।

कहां से आया 100 गुनहगार बनाम 1 निदोर्ष का सिद्धांत

आपराधिक कानूनों में ब्लैकस्टोन रेश्यो थ्योरी चलती है। फ्रैंकलिन से भी पहले इंग्लैंड के एक जज और ज्यूरिस्ट विलियम ब्लैकस्टोन ने यह सिद्धांत दिया था कि भले ही 10 दोषी छूट जाएं, मगर 1 भी निर्दोष को सजा नहीं होनी चाहिए। कुछ समय बाद ही फ्रैंकलिन ने पहले के 10 के बजाय इस कथन को 100 कर दिया। उन्होंने कहा-भले ही 100 गुनहगार छूट जाएं, मगर कोई बेगुनाह को सजा नहीं होनी चाहिए। इसी के आधार पर तब बोस्टन में नरसंहार करने वाले ब्रिटिश सैनिक सजा पाने से बच गए थे। 18वीं सदी के आखिरी दशकों में उस वक्त यह सिद्धांत काफी चर्चा में रहा था। यह सिद्धांत अब 21वीं सदी में अदालतों में अक्सर नजीर बनकर सामने आती है। भारत में भी इसी को अपनाया गया है।

पतंग से खोज ली बिजली, पहली रोशनी का दिया सिद्धांत

फ्रैंकलिन ने साइंस ऑफ इलेक्ट्रिसिटी की खोज की। बाद में माइकल फैराडे ने इसी आधार पर बिजली का आविष्कार किया। फ्रैंकलिन ने 1752 में बिजली को भांप लिया था। उन्होंने एक पतंग उड़ाई और उसमें धातु से बने धागे में चाबी बांध दी। हवा की तेज रफ्तार से जब चाबी पर रगड़ हुई तो चिंगारी निकली, जो बिजली के आविष्कार की दिशा में पहला कदम था।


घरों पर गिरने वाली बिजली के नुकसान से बचाया

फ्रैंकलिन के प्रयोग ने यह बताया कि अगर किसी इमारत के ऊंचे बिंदु पर एक मेटल की धातु रखी हुई है, जो एक कंडक्टर से जुड़ी हुई है तो मेटल की धातु पर बिजली गिरने पर उससे जुड़ा कंडक्टर बिजली को इमारत से दूर जमीन में ले जाएगा। इस समझ का इस्तेमाल करके लकड़ी के घरों और इमारतों को बिजली गिरने से होने वाले नुकसान से बचाया गया। आज पूरी दुनिया में इसी सिद्धांत का इस्तेमाल कर हजारों जानें बचाई जाती हैं।

जल्दी उठना और सोना धनी बनाता है, यह सूत्र दिया

फ्रैंकलिन का एक कथन दुनिया के लिए नजीर बन गया। उन्होंने कहा था कि जल्दी उठना और जल्दी सोना एक आदमी का स्वस्थ, धनी और बुद्धिमान बनाता है। उन्होंने बिजली के रॉड, स्टोव और आर्मोनिका ग्लास की भी खोज की। उन्होंने अखबार निकाला और कारोबार भी किए। फ्रैंकलिन ने पहले तो खुद दासों को मुक्त कर दिया और दूसरों को भी प्रेरित किया कि वो दासों को गुलाम न बनाएं। उनकी इसी सोच ने बाद में अमेरिका में दास प्रथा खत्म करने में अहम भूमिका निभाई।

क्या था मामला, जिसमें याद किए गए फ्रैंकलिन

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को शराब घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में जमानत देते हुए राउज एवेन्यू कोर्ट ने कहा था कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) उनके खिलाफ इस मामले से सीधे तौर पर जुड़े होने के सुबूत देने में नाकाम रहा। निचली अदालत के आदेश के बाद ईडी की अपील पर दिल्ली हाईकोर्ट ने केजरीवाल को जमानत देने के आदेश पर रोक लगा दी। दरअसल, केजरीवाल को राहत देते हुए विशेष जज न्याय बिंदु ने कहा कि पहली नजर में उनका अपराध अभी तक सिद्ध नहीं हो सका है।

जज ने ऐसा क्या कहा, जिसका कनेक्शन अमेरिका से है

दिल्ली के राउज एवेन्यू कोर्ट की विशेष न्यायाधीश न्याय बिंदु ने ही दिल्ली शराब घोटाला केस में सीएम अरविंद केजरीवाल को जमानत देने का फैसला सुनाया। सुनवाई के दौरान जज ने अमेरिका के संस्थापकों में से एक बेंजामिन फ्रैंकलिन को कोट करते हुए कहा, भले ही 100 दोषी व्यक्ति बच जाएं, लेकिन एक निर्दोष व्यक्ति को सजा न हो। उन्होंने कहा कि कानून का यह सिद्धांत है कि जब तक दोष साबित न हो जाए, तब तक हर व्यक्ति को निर्दोष माना जाना चाहिए। मगर, मौजूदा मामले में यह सिद्धांत ऐसा लागू होता प्रतीत नहीं होता है।

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