RJD स्थापना दिवस: करियर के सुनहरे दौर में लालू ने बनाई थी पार्टी


 RJD Sthapna Diwas Lalu Yadav: अपने 28वें स्थापना दिवस पर राजद (RJD) का पटना स्थित पार्टी दफ्तर बैनर-पोस्‍टरों से पटा है. प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह की अध्यक्षता में समारोह होगा और सुप्रीमो सुप्रीमो लालू यादव (Lalu Yadav) और तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) पार्टी कार्यकर्ताओं को गुरुमंत्र देंगे. देश में राष्ट्रीय राजनीतिक दलों के अलावा कई क्षेत्रीय दल राजनीतिक दल हैं. जिनका लोकसभा में संख्याबल 1 सांसद से लेकर 240 तक है. यहां कहानी राष्ट्रीय जनता दल यानी राजद के जन्म की.

आरजेडी और बिहार की पॉलिटिक्स

लालू यादव ने अपने करीबी जगदानंद सिंह के साथ 1997 में राष्ट्रीय जनता दल की स्थापना की थी. दलितों, पिछड़ों और मुसलमानों की रहनुमाई का दावा करने वाली राजद ने लालू के नेतृत्व में कई बार बिहार में सत्ता का सुख भोगा. 

वो दाग जो आज भी 'गहरा' है

लालू प्रसाद यादव ने 'राजद' का गठन अपने राजनीतिक करियर के सबसे सुनहरे दिनों में अचानक से आए उस संकट में किया था जिसके दंश से वो उम्र के इस आखिरी दौर में आने के बावजूद मुक्त नहीं हो सके हैं. या फिर ये लिखना ज्यादा सही होगा कि लालू और उनकी पार्टी पर जो दाग करीब तीन दशक पहले लगा था उससे वो आजतक तक आजाद नहीं हो सके हैं. 

तब न राजद पैदा नहीं हुई थी और न सोशल मीडिया था'

भारत की राष्ट्रीय राजनीति में 1995 से 1998 का दौर सबसे अस्थिर माना जाता है. उस समय जनता दल नामक पार्टी का उत्तर से लेकर दक्षिण भारत तक जलवा था. ये वह दौर था जब लालू प्रसाद यादव के करियर का गोल्डन दौर चल रहा था. लालू जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष हुआ करते थे. उन्हें जनता दल की कमान एसआर बोम्मई का नाम हवाला कांड में आने के बाद मिली थी. उस समय भारत में इंटरनेट शैशवकाल में था. सोशल मीडिया का तो जन्म भी नहीं हुआ था. 

'हवाला ने जनता दल को मेरे हवाले कर दिया'

न्यूज़ के नाम पर आकाशवाणी, दूरदर्शन और चंद अखबार होते थे. वो हाथ जोड़कर डोर टू डोर प्रचार करने का जमाना था. उस समय लालू यादव ने बिहार की सियासत का शहंशाह बनने के लिए राजद बनाने का जो प्रयोग किया वो किसी अजूबे से कम नहीं था. तब प्रचार के माध्यम न के बराबर होते थे. दीवारों पर इश्तिहार लिखे जाते थे. खबरनवीसों यानी पत्रकारों के बीच हों या जनता के बीच लालू यादव खैनी रगड़ते-रगड़ते मौज में कह देते थे 'हवाला ने जनता दल को मेरे हवाले कर दिया.'

5 जुलाई 1997 को लालू ने जब राष्ट्रीय जनता दल का गठन किया तब वे जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के साथ साथ बिहार के मुख्यमंत्री भी थे और उस समय सोने पे सुहागा ये था कि उनकी ही पार्टी जनता दल के नेता देश के प्रधानमंत्री थे. राजनीति में भला इससे बेहतर सुनहरा दौर किसी के लिए क्या हो सकता है. लेकिन इसी दौर में सीबीआई ने चारा घोटाले में लालू प्रसाद यादव के खिलाफ चार्जशीट दाखिल करने का फैसला लिया. तो खुद लालू ने भी नहीं सोंचा होगा कि ये उनकी जिंदगी की सबसे बड़ी ट्रैजिडी बन जाएगा.

चारा घोटाले में लालू प्रसाद की संलिप्तता की सीबीआई जांच की फाइल वैसे तो तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की 13 दिनों की सरकार के दौरान खुली थी लेकिन उसे आगे बढ़ाने का काम एचडी देवगौड़ा की सरकार के समय किया गया था जिनकी पार्टी का नाम आज भी राजद के नाम से मिलता जुलता है.

देश के सियासी जानकारों का मानना है कि एचडी देवगौड़ा भी मनमोहन सिंह की तरह परिस्थितिवश यानी एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर तो बन गए थे लेकिन खुद की पॉपुलैरिटी कम होने की वजह से वो उस दौर के जनप्रिय नेताओं से कुछ कांप्लैक्स महसूस करते थे. कहा जाता है कि पहले उन्होंने हेगड़े को हटवाया और फिर लालू यादव पर अंकुश लगाने का रास्ता उन्हें दिख गया था.

पूर्व पीएम इंद्र कुमार गुजराल ने अपनी आत्मकथा मैटर्स ऑफ़ डिसक्रिएशन में कई जगहों पर इसका जिक्र किया है कि देवगौड़ा लालू को पसंद नहीं करते थे. इसके बावजूद लालू ने उस समय न सिर्फ वजूद बचाया बल्कि बिहार में खुद को कुछ वर्गों का कथित रहनुमा घोषित करने में कामयाबी हासिल कर ली थी.

आज लालू बीमार हैं. बेटी की किडनी के सहारे जीवित हैं. राजद 2024 के लोकसभा चुनावों में मात्र 4 सीटें जीत पाई है. राजद का कामकाज तेजस्वी यादव देखते हैं. ऐसे में आज राजद के स्थापना दिवस पर लालू यादव जहां पार्टी को अगले दौर में ले जाने का गुरुमंत्र दे सकते हैं, वहीं तेजस्वी यादव भी पटना में पार्टी दफ्तर से नई हुंकार भर सकते हैं.

The10news

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