पलभर में मचा मौत का तांडव, 121 लोगों की गई जान, पीछे रह गया दर्द-गम और तबाही का मंजर


 

Hathras Stampede: भोले बाबा के समागम में मौत ने ऐसा तांडव मचाया कि जय-जयकार चीख पुकार में बदल गई. बाबा तक पहुंचने की होड़ में अनुयायियों ने न बच्चों को देखा, न बुजुर्ग महिलाओं को. एक-दूसरे को धकियाते, कुचलते आगे बढ़ते गए. आस्था की अंधी दौड़ में उन्होंने क्या कर डाला इसका अहसास जब तक हुआ तब तक बहुत देर हो चुकी थी.

बिखरीं चप्पलें, इधर-उधर पड़ा सामान… यह तस्वीर बानगी हैं उस तबाही की जहां मंगलवार को मौत ने तांडव मचाया. हाथरस के सिकंदराराऊ के फुलवाई गांव में जहां समागम हो रहा था वहां अब सन्नाटा है. मौत का सन्नाटा… इससे कुछ किलोमीटर दूर सीएचसी का नजारा कलेजा फाड़ देने वाला है. यहां लाशों के ढेर लगे हैं. लोग अपनों को तलाश रहे हैं. कुछ तलाशते-तलाशते थक चुके हैं. तो कुछ अपनों की लाशें देखकर बेसुध हो रहे हैं.

मौत का ये मंजर दिल दहला देने वाला है. अनुयायी तो स्वयंभू संत भोले बाबा के समागम में आए थे. अपने आराध्य के प्रवचन सुनने के बाद उनके चरणों की रज यानी धूल माथे से लगाना चाहते थे. इस होड़ की कीमत उन्हें अपनी जान देकर चुकानी पड़ेगी ये किसने सोचा था. कितना क्रूर रहा होगा वो पल इसकी कल्पना भी रूह कंपा देने वाली है. मौत आई और पलभर में 121 लोगों को अपना शिकार बनाकर चली गई. पीछे रह गया तो बस दर्द, गम और चीत्कार… सवाल ये है कि आखिर ऐसा हुआ क्यों?

फुलवाई गांव में हाईवे से सटी जगह पर भोले बाबा का मानव मंगल मिलन सद्भावना समागम आयोजित किया गया. आयोजकों ने इसके लिए बड़ा पंडाल सजाया था. समागम एक दिनी था, जिसका समय सुबह 10 बजे से 4 बजे तक रखा गया था. सत्संग एक दिनी होने की वजह से सुबह से ही अनुयायी पंडाल में पहुंचने लगे थे. दोपहर 12 बजे स्वयंभू संत भोले बाबा समागम में पहुंचे. जय-जयकार हुई. नारायण साकार हरि की ब्रह्मांड में जय-जयकार हो के नारे गूंजे. आस्था कहें या अंध विश्वास बाबा को आराध्य मानने वाले अनुयायियों में कई पुलिसवाले भी थे जो हाथ उठाकर बाबा के जयकारे लगा रहे थे. अनुयायी बेकाबू न हो जाएं इसके लिए बाबा की पर्सनल फोर्स यानी गुलाबी ड्रेस में सेवादार तैनात थे. सब कुछ सही जा रहा था. आयोजक खुश थे, क्योंकि समागम सफलता की तरफ बढ़ रहा था.

कैसे बेकाबू हो गए अनुयायी

समागम अपने चरम पर पहुंचा. भोले बाबा तकरीबन दो घंटे तक लगातार अनुयायियों को प्रवचन देते रहे. इसके बाद आरती हुई, भोले बाबा के भजन गूंजे. दोपहर तकरीबन 2 बजे बाबा ने अनुयायियों से विदा ली. अपने काफिले के वाहन में सवार हुए और निकलने लगे. यही वो पल था जब भीड़ बेकाबू हो गई. बाबा के पैरों की धूल माथे से लगाने के लिए अनुयायियों में भगदड़ मच गई. होड़ ऐसी कि न बच्चों को देखा, न बुजुर्ग महिलाओं को. एक-दूसरे को धकियाते, कुचलते आगे बढ़ते गए. आस्था की अंधी दौड़ में उन्होंने क्या कर डाला इसका अहसास जब तक हुआ तब तक बहुत देर हो चुकी थी. जय-जयकार अब चीख पुकार में बदल गई थी. बच्चे अपनी मां के शव पास रो रहे थे, तो कुछ महिलाएं अपने बच्चों का शव गोद में उठाए आंसू बहा रही थीं. सैंकड़ों लोग रौंदे गए थे. किसी को किसी दूसरे को देखने की फुरसत ही कहां थी.

The10news

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