चंद्रशेखर ने को लोकसभा में यूपी के बंटवारे का मुद्दा फिर से उठा दिया


 चंद्रशेखर ने गुरुवार को लोकसभा में यूपी के बंटवारे का मुद्दा फिर से उठा दिया. पिछले कई सालों से ये मुद्दा किसी भी राजनीतिक पार्टी के एजेंडे पर नहीं रहा है. वैसे तो बीजेपी छोटे राज्यों का पक्षधर रही है. लेकिन वो यूपी के विभाजन के विरोध में है. कभी हरित प्रदेश की वकालत करने वाली राष्ट्रीय लोक दल ने भी अब इसे भुला दिया है. ऐसे में लोकसभा में यूपी विभाजन की मांग चंद्रशेखर ने क्यों की? आखिर इसके पीछे की राजनीति क्या है? मायावती ने अब से बारह साल पहले यूपी के बंटवारे का प्रस्ताव विधानसभा में पास करवा लिया था.

बीएसपी चीफ मायावती और आजाद समाज पार्टी अध्यक्ष चंद्रशेखर एक दूसरे के विरोधी माने जाते हैं. तो फिर ये महज संयोग है या फिर किसी तरह का प्रयोग!

आखिर क्या वजह है कि चंद्रशेखर अब मायावती की लाइन पर हैं. दोनों नेताओं का वोट बैंक भी एक जैसा ही है. बीएसपी की घटती लोकप्रियता और चंद्रशेखर का बढ़ता प्रभाव आपस में जुड़े हुए हैं. चंद्रशेखर की कोशिश एक तरह से मायावती की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने की है.

मायावती की पार्टी बीएसपी संकट में

बीएसपी चीफ मायावती भी अलर्ट हैं. यूपी की चार बार मुख्यमंत्री रह चुकीं मायावती की पार्टी बीएसपी संकट में है. लोकसभा चुनाव में पार्टी का खाता तक नहीं खुला. यूपी के चुनाव में बीएसपी के एक ही विधायक चुने गए. पार्टी से नई पीढ़ी को जोड़ने के लिए अपने भतीजे आकाश आनंद को राजनीति में लेकर आईं.

आकाश को उन्होंने अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी बनाया. फिर अचानक लोकसभा चुनाव के बीच में उनके प्रचार पर रोक लगा दिया. उन्होंने इमेच्योर बता दिया. चुनाव खत्म होते ही मायावती ने उन्हें फिर से बीएसपी में नंबर दो बना दिया. लेकिन तब तक चंद्रशेखर रावण अपने लिए लंबी लकीर खींच चुके थे.

पश्चिमी यूपी में दलित और मुस्लिम मायावती की ताकत रहे हैं. इनके दम पर ही बीएसपी सालों तक पश्चिमी यूपी में सबसे बड़ी राजनीतिक ताकत बनी रही. एक समय में मायावती को जाट समाज का भी वोट मिला. बीएसपी कमजोर हुई तो मुसलमानों ने साथ छोड़ दिया. दलित में सिर्फ जाटव उनके साथ बच गए.

सोशल इंजीनियरिंग पर चंद्रशेखर की नजर

लोकसभा चुनाव में चंद्रशेखर नगीना से सांसद बन गए. उन्हें मुसलमानों ने वोट दिया. दलितों ने वोट दिया. जाट समाज के लोगों ने भी वोट दिया. अब चंद्रशेखर इसी सोशल इंजीनियरिंग के दम पर यूपी के बंटवारे के मुद्दे में जान फूंकने की तैयारी में हैं.

उन्हें लगता है कि अगर पश्चिमी यूपी अलग राज्य बना तो फिर उनके मुख्यमंत्री बनने का चांस बन सकता है. पश्चिमी यूपी में दलित, मुस्लिम और जाट बिरादरी के वोटर मिलकर उनका मिशन पूरा कर सकते हैं.

अलग राज्य को लेकर पश्चिमी यूपी में कभी कोई बड़ा आंदोलन नहीं हुआ. लेकिन चंद्रशेखर अब इस मुद्दे की थाह लेना चाहते हैं. ये भी सच हैं कि यूपी के बंटवारे को कभी किसी ने गंभीरता से नहीं लिया.

मायावती ने मुख्यमंत्री रहते हुए 22 नवंबर 2011 को यूपी के बंटवारे का प्रस्ताव विधानसभा में पास करा लिया था. कुछ ही महीने बाद विधानसभा के चुनाव हुए. मायावती की जगह अखिलेश यादव सीएम बन गए. फिर कभी यूपी के विभाजन पर कोई चर्चा नहीं हुई

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